जांच में रिश्वतखोरी का दोषी सचिव निलंबित, परंतु मुकदमा क्यों नहीं ?
रिपोर्ट - दानिश सिद्दीकी
पीलीभीत : जिले के बिलसंडा ब्लॉक में तैनात रिश्वतखोर सचिव ने अपने असिस्टेंट के माध्यम से मुख्यमंत्री आवास दिलाने के नाम पर दिव्यांगों से रिश्वत के रुपए लेकर अपने खाते में ट्रांसफर कराए थे ,जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था, तथा रिश्वतखोरी के बाद दिव्यांगों,सचिव के असिस्टेंट और सचिव के बीच हुई बहस का भी एक वीडियो वायरल हुआ था। इसके बाद लंबी जांच की गई और तब कहीं सोमवार को सचिव को निलंबित किया गया , परंतु सचिव पर विभाग ने भ्रष्टाचार का मुकदमा अभी तक पंजीकृत नहीं कराया है।
यह है पूरा मामला
दरअसल दिव्यांगों को मुख्यमंत्री आवास देने के एवज बिलसंडा ब्लॉक में तैनात सचिव प्रकाश राम आर्य ने दिव्यांगों से 10-10 रूपये की रिश्वत की मांग की थी। इस रिश्वत के रुपए को दिव्यांगों से सचिव प्रकाश राम आर्य के असिस्टेंट सत्यम तिवारी ने कलेक्ट किया था और उन रुपयों को सत्यम तिवारी ने ऑनलाइन सचिव प्रकाश राम आर्य के खाते में ट्रांसफर किया था।
परंतु लंबा समय बीत जाने के बाद जब दिव्यांगों को आवास नहीं मिल पाए तो उन्होंने सत्यम तिवारी से अपने दिए गए रुपयों की मांग की। सत्यम तिवारी ने दिव्यांगों से लिए गए रुपयों को सचिव प्रकाश राम आर्य के खाते में ऑनलाइन ट्रांसफर करने का विवरण दिखाया और दिव्यांगों से कहा कि वह प्रकाश राम आर्य के सामने इस बात को कहेगा कि उनसे कलेक्ट किए गए रिश्वत के रुपयों को उसने प्रकाश राम आर्य के खाते में ऑनलाइन ट्रांसफर किया है।
दिव्यांगों, सचिव और उसके असिस्टेंट का हुआ था वीडियो वायरल
बिलसंडा ब्लॉक में तैनात सचिव प्रकाश राम आर्य और उसके असिस्टेंट सत्यम तिवारी तथा दिव्यांगों के बीच हुई शर्मनाक रिश्वतखोरी की बहस का एक वीडियो भी वायरल हुआ था। इस वायरल वीडियो में सत्यम तिवारी और प्रकाश राम आर्य से आवास ना मिलने पर दिव्यांग अपने दिए गए रुपयों की मांग कर रहे थे। सचिव प्रकाश राम आर्य का असिस्टेंट सत्यम तिवारी सभी पीड़ित दिव्यांगों के सामने सचिव को रुपए देने की बात कह रहा था। इस दौरान हो रही पूरी शर्मनाक बहस का वीडियो किसी ने बनाकर वायरल किया था।
ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के स्क्रीनशॉट भी हुए थे वायरल
दिव्यांगों से सचिव प्रकाश राम आर्य के अस्सिटेंट द्वारा लिए गए रिश्वतखोरी के रुपए को उसके असिस्टेंट सत्यम तिवारी द्वारा सचिव प्रकाश राम आर्य के खाते में ऑनलाइन ट्रांसफर किया गया था, इन ट्रांजेक्शन को सचिव के असिस्टेंट सत्यम तिवारी ने मीडिया को भी दिखाया था और दिव्यांगों को भी शेयर किया था, जोकि सोशल मीडिया पर वायरल है।इसके बाद इस गंभीर प्रकरण की जांच शुरू हुई।
काफी दिनों तक लटकी रही जांच । जांच अधिकारी कर रहे थे रिश्वतखोर सचिव को बचाने का प्रयास-सूत्र
इतने ठोस सबूत होने के बाद 3 दिनों में जांच पूरी करने के लिए बीडीओ ने जांच टीम का गठन किया था ,परंतु 10 दिन तक जब जांच पूरी नहीं हुई तो बीडीओ ने जांच टीम को एक रिमाइंडर भी जारी किया था,परंतु उसके बाद भी जांच लटकी रही। जब बीडीओ ने विभाग की किरकिरी होते देख सख्त रुख अपनाया तब कहीं जांच टीम ने सचिव प्रकाश राम आर्य को रिश्वतखोरी का दोषी मानते हुए जांच पूरी की ।
सूत्रों की माने तो जांच टीम प्रकाश राम आर्य की जांच को लंबा खींच कर उसे बचाने का प्रयास कर रही थी, परंतु रिश्वतखोरी के ठोस सबूत होने की वजह से जांच टीम रिश्वतखोर सचिव प्रकाश राम आर्य को बचा नहीं पाई और जांच टीम द्वारा सचिव को दोषी मानते हुए जांच की रिपोर्ट को सौंपना पड़ा।
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रिश्वतखोरी के ठोस सबूत परंतु मुकदमा नहीं ?
दरअसल प्रकाश राम आर्य ने दिव्यांगों से 10-10 हजार रुपए लेकर उन्हें मुख्यमंत्री आवास देने का आश्वासन दिया था, इसका जीता जागता सबूत यह है कि सचिव प्रकाश राम आर्य के असिस्टेंट सत्यम तिवारी ने दिव्यांगों के सामने और मीडिया के सामने दिव्यांगों से रुपए लेकर सचिव प्रकाश राम आर्य को देना स्वीकार किया था तथा इसके साथ ही उन ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को भी दिखाया जिसके माध्यम से रुपयों को सचिव प्रकाश राम आर्य के खाते में ट्रांसफर किया गया था।
इसके बाद हुई जांच में दोषी पाते हुए सचिव प्रकाश राम आर्य को निलंबित किया गया, परंतु जब जांच में दोष सिद्ध हो गया तो मात्र निलंबित ही किया गया जबकि ऐसे रिश्वतखोर सचिव पर भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत होना चाहिए था। क्योंकि जांच टीम द्वारा सचिव को दोषी पाया गया है।
सरकार की योजनाओं में भ्रष्टाचार की दीमक लगाने वाले सचिव पर कब होगा मुकदमा
सरकार की मंशा है कि गरीब और असहाय दिव्यांगों के लिए आवास दिए जाएं ,परंतु प्रकाश राम आर्य जैसे रिश्वतखोर ऐसी योजनाओं की ताक में लगे रहते हैं और उसमें भ्रष्टाचार की दीमक लगाकर सरकार की मंशा पर भी पानी फेरते हैं और पात्रों का भी खून चूसते हैं। अगर सचिव प्रकाश राम आर्य के खाते में किए गए रुपयों का ट्रांजैक्शन नहीं होता और इस रिश्वत को ऑफलाइन लिया जाता तो शायद सचिव प्रकाश राम आर्य को इस रिश्वतखोरी के बाद भी विभाग बचा देता।
विभाग ने जांच में दोष सिद्ध होने पर सचिव को मात्र निलंबित ही किया है , जबकि जांच में रिश्वतखोरी का दोष सिद्ध होने पर साथ ही साथ मुकदमे का आदेश पारित करते हुए रिश्वतखोर सचिव को जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाना चाहिए था।