हजरत इमाम हसन हुसैन की शहादत को किया याद, निकाला जुलूस , या हुसैन के नारों से गूंजा मीरगंज
रिपोर्ट - लादेन मंसूरी , मीरगंज
बरेली / मीरगंज : कस्बे में हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हसन और हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के मातमी पर्व पर मुस्लिम समाज के लोगों ने अकीदत व अहतराम के साथ ताजिये का जुलूस निकाला। मोहम्मदी रंग में रंगे मौमिनों ने या अली मौला हुसैन के नारे लगाकर कर्बला की जंग को ताजा कर दिया और हसन हुसैन की शहादत को याद किया।
शनिवार को मुस्लिम समाज के लोगों ने गावों से लेकर कस्बे तक मोहर्रम का जुलूस निकाला। इस अवसर पर सुबह 10 बजे से ताजिए का जुलूस ढोल नगाड़ों के साथ रवाना हुआ। यह जुलूस कस्बे के मुख्य मार्गों से होते हुए कर्बला सिल्लापुर पहुंचा। जगह–जगह लोगों ने शरबत की सबील लगाई।
मोहर्रम पर्व पर ताजिया जुलूस को लेकर थाना प्रभारी हरेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस भी अलर्ट रही,साथ में एसआई राजकुमार भी मौजूद रहे जिन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने में अहम योगदान रखा।
आपको बता दें कर्बला में हजरत इमाम हुसैन की शहादत ने इस्लाम का बोलबाला कर दिया। मोहर्रम इस्लामिक साल का पहला महीना कहलाता है। मुस्लिम मजहब में मुहर्रम का बहुत ही अहम मर्तबा है।पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैह वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत में मुहर्रम मनाया जाता है।इसमें शिया समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद कर शोक मनाते हैं। दरअसल, इस दिन को इस्लामिक कल्चर में मातम का दिन भी कहा जाता है , क्योंकि नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ को जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे, तभी से मुहर्रम मनाया जाने लगा। मोहर्रम माह के 10वें दिन रोज-ए-आशुरा मनाया जाता है। इस साल 29 जुलाई को आशूरा मनाया गया। इसे मातम का दिन भी कहा जाता है। वहीं क्षेत्र के कई गांव के मोहर्रम मीरगंज पहुंचे,जैसे कि ग्राम पैगा नगरी, रसूलपुर, परोरा, शीशम खेड़ा, हल्दी और काफी गांव के भी मोहर्रम बैंड बाजों के साथ मीरगंज और कुछ गांव के मोहर्रम कर्बला शरीफ भी गए। खूबसूरती में नंबर वन का मोहर्रम पैगानगरी का रहा।खूबसूरती में लोगों ने बताया कि पैगा नगरी की मोहर्रम की तरह मीरगंज में कोई मोहर्रम नहीं दिखा।