उर्दू किताबों को आधुनिक शिक्षा के तर्ज पर बदलने की जरूरत-IRC
बरेली: इस्लामिक रिसर्च सेन्टर (आईआरसी) स्थित दरगाह आला हज़रत में “ऊर्दू निसाबे तालिम” के सम्बंध में उलमा, बुध्दिजीवी और विभिन्न कालेजों व विश्व विद्यालयों से जुड़े हुए महत्वपूर्ण लोगों ने भाग लिया। इसकी अध्यक्षता दारुल उलूम मंज़रे इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी ने की।
50 साल पुरानी शिक्षा नीति के तर्ज पर की जा रही पढ़ाई
इस्लामिक रिसर्च सेन्टर के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे मदरसों और स्कूलों में प्राईमरी कक्षाओं में जो ऊर्दू का निसाबे तालिम पढ़ाया जाता है वो लगभग 50 साल पुराना है। इस दरमियान दुनिया ने कहा से कहा तरक्की कर ली , और दिगर कौमें कहा से कहा पहुंच गंई, शिक्षा के मैदान में लोग आसमान छूने लगे, मगर मुसलमान अभी भी 50 साल पीछे ही हैं। जरूरी है की प्राइमरी शिक्षा की ऊर्दू किताबों को आधुनिक शिक्षा की तर्ज पर बदला जाए , जिससे छात्र व छात्राओं को नई शिक्षा हासिल हो सके।
शिक्षा की गतिविधियों में पिछड़ा हुआ है मुस्लिम समाज
बरेली कॉलेज बरेली के अरबी डिपार्टमेंट के अध्यक्ष प्रोफेसर महमूद हुसैन ने सूझाव दिया कि मुस्लिम समाज दुनिया भर की शिक्षा की गतिविधियों में बहुत पिछड़ा हुआ है। मुस्लिम समाज के लोग शिक्षा निति में आगे नहीं बढ़ सके, इसकी वजह यह है कि हमने मदरसों में आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने पर कभी जोर नहीं दिया। अब बदलाव का समय आ गया है कि हम पूराने सिलेबर्स को बदलें और नये जमाने के हिसाब से नये सिलेबर्स को तैयार करें, हमें अपनी पूरानी शिक्षा प्रणाली को बदलना चाहिए।
उर्दू का नया स्वरूप तैयार करना होगा
मौलाना मुजाहिद हुसैन ने कहा कि मॉर्डन शिक्षा निति को देखते हुए उर्दू का नया स्वरूप तैयार करना होगा तभी मुस्लिम बच्चे तरक्की कर सकते हैं। कोलालामपुर यूनिवर्सिटी मलेशिया के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर ताहिर बे़ग ने कहा कि आज की मीटिंग से हमें ये नतीजा हासिल करना है कि मदरसों में नयी शिक्षा निति का अब वक्त आ गया है। नया सिलेर्वस तैयार करने के लिए और बड़े विद्वानों से इस पर चर्चा होनी चाहिए। आज के हालात के पेशे नज़र नया निसाब लिखा जाना बहुत जरूरी है।
बच्चों को दी जाती है घिसीपिटी उर्दू शिक्षा
मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी के कार्डिनेटर हाजी नाजिम बे़ग ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुस्लिम एनजीओ द्वारा स्थापित स्कूलों में बच्चों को उर्दू की जो शिक्षा दी जाती है वो बहुत घिसी पीटी है। ऐसी किताबें हो जिसके माध्यम से बच्चे बहुत जल्द उर्दू सीख सकें। तंज़ीम उलमा-ए-इस्लाम के राष्ट्र प्रवक्ता मौलाना हाफिज नूर अहमद अजहरी ने कहा कि मदरसों और मकतबों में शिक्षा के सुधार के लिये नयी शिक्षा नीति की आवश्यकता है। ये कार्य जब तक बड़े पैमाने पर नहीं होगा उस वक्त तक बदलाव नहीं आ सकता।
देर से उठाया गया अच्छा कदम बताया
बरेली विकास प्राधिकरण के पूर्व अधिकारी सय्यद असद अली ने मशवरा दिया कि एक बोर्ड का गठन कर दिया जाये ताकि उर्दू निसाबे तालिम का काम जल्द से जल्द हो जाये। रोहेलखण्ड यूनिवर्सिटी के जहीर अहमद ने कहा कि ये देर में उठाया गया बहुत अच्छा कदम है हम इस निसाब को पूरे भारत के सभी मदरसों व स्कूलो में लागू कराने के लिए जद्दोजहद करेंगे।
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3 महीने में नई शिक्षा नीति की किताबें तैयार करने की कोशिश
इस्लामिक रिसर्च सेन्टर के सचिव डाक्टर अनवर रजा कादरी ने सभी लोगों को अवगत कराया कि नए निसाब के बनाएं जाने के लिए Grand mufti of India शेख़ अबुबकर अहमद मलबारी ने सहमती जताई है और दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी ने भी मंजूरी दी है। सबकी सहमती से एक उर्दू निसाब कमेटी का गठन किया गया है । इस कमेंटी में बरेलवी सूफ़ी विचार धारा के मशहूर प्रचारक व लेखक मौलाना शहाबुद्दीन रजवी को अध्यक्ष और प्रोफेसर डॉक्टर गुलाम अंजूम (देहली), मुफ्ती सलीम नूरी (बरेली) ,प्रोफेसर यासीर हूसैन (लखनऊ) ,मौलाना हामिद बरकाती (केरला), डॉक्टर महमूद हूसैन, हाजी नाजिम बे़ग , मौलाना अतीफ मिस्बाही (आजमगढ़) जैसे विद्वान और स्कोलर्स पर मूशतमिल कमेटी का गठन किया गया है। ये कमेंटी तीन महीने के अन्दर कक्षा एक से लेकर कक्षा आंठ तक किताबें तैयार करेगी।
मीटिंग में यह लोग रहे मौजूद
इस खूसूसी मीटिंग में उक्त लोगों के अलावा मौलाना मुस्तकीम अहमद , मौलाना अनीसूर रहमान, मौलाना मूजाहीद हूसैन, मुजाम्मिल रजा खां, अली रजा एडवोकेट, मौलाना अरबाज रज़ा ,जारीफ गद्दी, इंजिनियर नाजिम अली, डॉक्टर नदीम रजा कादरी, रशीद खां अजहरी , सय्यद फैजान अली, सलीम अहमद अड़ती , अब्दुल हसीब ख़ां, जिशान रज़ा, मुजाहिद रज़ा, मज़हर रज़ा आदि उपस्थित रहे।