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दोज़ख से आज़ादी पाने की रात हैं शब-ए-बरात

🔹बरेली हज सेवा समिति के संस्थापक पम्मी खान वारसी ने कहा कि शब-ए-बरात की रात इबादत करने पर गुनाहों से मिलती हैं माफी

बरेली-शब-ए-बरात इबादत की रात हैं और दोज़ख से आज़ादी पाने की रात है,शब-ए-बरात पर मुसलमान रात भर अपने घरों और मस्जिदों में इबादत करते हैं दरगाहों और कब्रिस्तानों में जाकर अपने अज़ीज़ बुज़ुर्गो के लिये अल्‍लाह पाक से मग़फ़िरत की दुआ करते हैं।

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बरात को शाबान महीने की 14वीं तारीख व15वीं तारीख के मध्य में मनाया जाता है,और बंदे एक दूसरे को शब-ए-बरात की मुबारकबाद देने के साथ ही साथ माफ़ी मांगते हैं।

शब-ए-बरात में इबादत करने वाले लोगों के अल्लाह तआला गुनाह माफ कर देता हैं ये रात तौबा की रात के साथ-साथ कामयाबी और खुशहाली पाने की भी रात हैं।

इस्लामिक हिजरी कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बरात इबादत की रात है,यह हर साल शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है, इस मौके पर जहां लोग अल्‍लाह से अपनी बेहतरी के लिए दुआ करते हैं और गुनाहो की माफी मांग कर इबादत में रात बिताते हैं,और रोज़ा रखते हैं।

शब-ए-बरात के मौके पर मुस्लिम समाज में घरों को विशेष रूप से सजाया जाता है,शब-ए-बारात में मस्जिदों और कब्रिस्तानों में भी खास तरह की सजावट की जाती है,साथ ही लोग अपने बुजुर्गों की कब्रों पर जाकर मग़फ़िरत की दुआएं करते हैं और गुनाहों से माफी की दुआ मांगते हैं।

कोरोना से निजात के लिए मुल्क व मिल्लत के लिए दुआ करें

इस्लामिक मान्‍यता के मुताबिक चार मुकद्दस रातों में आशूरा की रात, शब-ए-मेराज और शब-ए-कद्र में से एक शब-ए-बारात भी है, शब-ए-बरात बहुत ही मुकद्दस वाली रात हैं अल्लाह अपने नेक बन्दों को अपनी रहमतों बरकतों और फ़ज़ीलत से नवाज़ता हैं।

यह रात अल्लाह से फ़ज़ीलत पाने की रात हैं इसलिये सड़को पर बेवजह घूमने से बेहतर हैं मस्जिदों या घरो में रहकर कज़ाये उमरी नमाज़ पढ़े,एक दूसरे की मदद करें,दिली मोहब्बतों को क़ायम करें।

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