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सज्जादानशीन ने मुकदमे वापस लेने के साथ-साथ की सीओ थर्ड, इंस्पेक्टर बारादरी, चौकी इंचार्ज शहामतगंज पर कार्रवाई की मांग।

बरेली : मरकज-ए-अहले सुन्नत दरगाह आलाहजरत के सज्जादानशीन हज़रत मुफ्ती अहसन मियाँ ने आज अपने बयान में कहा कि जिला प्रशासन की सबसे बड़ी चूक यह है कि उर्स-ए-रज़वी के दिन आनन-फानन में गुपचुप तरीके से पूरे शहर की नाकाबन्दी कर दी और हर जगह बैरियर बना कर ज़ायरीन को रोका गया,जबकि उर्स-स्थल इस्लामिया मैदान खाली रहा और उसमें सुबह 8 बजे से 2 बजे तक कुल दो-तीन सौ लोग ही थे।

हालांकि उर्स स्थल इस्लामिया ग्राउन्ड की क्षमता सोशल डिस्टेंसिंग के साथ एक से डेड़ लाख तक लोगों की है। अगर ज़ायरीन को इस्लामिया मैदान आने दिया जाता और उन्हें जगह-जगह लगाये गये बैरियरों पर भारी भीड़ की शक्ल में जमा करके रोका न गया होता तो इस तरह के हालात पैदा न होते।

बेरहमी से किया गया लाठीचार्ज

ज़ायरीन को सख्त गरमी मे भूखे प्यासे धूप में खड़ा रखा गया, मस्जिदों के इमाम व उलेमा के साथ अभद्रता की गई। अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया गया व इससे भी जब जी ना भरा तो सीओ (तृतीय) साद मियाँ और शहामतगंज पुलिस चैकी इंचार्ज ने इन भूखे-प्यासे ज़ायरीन जिनमे कोई 500 किलोमीटर तो कोई 1000 किलोमीटर से चल कर आये थे उन पर बेहरहमी से लाठीचार्ज कर पूरे शहर को आग में झोकने और उसका ठीकरा आला हज़रत के अकीदतमंदो के सर फोड़ने का नापाक काम किया।

सज्जादानशीन ने यह भी मांग की कि उर्से रज़वी के जायरीन पर लाठी चार्ज कर बरेली शहर को सीओ (तृतीय) साद मियाँ और पुलिस-प्रशासन ने दंगे की आग में झोकने का जो असफल प्रयास किया था ।कहीं उसके तार लखीमपुर हादसे से तो जुड़े हुए नहीं हैं। कहीं लखीमपुर की घटना से देश की तवज्जो हटाकर इसका रूख बरेली की तरफ मोड़ने का तो यह प्रयास नहीं था।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि आलाहज़रत के जायरीन उर्स में संयम और सब्र से काम न लिया होता तो सीओ साद मियाँ अपने पुलिस बल के द्वारा सैकड़ों बेगुनाह ज़ायरीन की निर्मम हत्या करवा चुके होते।

उन्होंने यह भी कहा कि इस बात की भी जाँच होना चाहिए कि यह सीओ साद मियाँ उस वहाबी विचारधारा और मानसिकता के तो नहीं जो बरेलवी, सुन्नी, सूफी, खानकाही विचारधारा की कट्टर विरोधी है और आलाहज़रत को यह वहाबी अपना कट्टर विरोधी मानते हैं। यदि ऐसा है तो हमें यह शंका है कि सीओल (तृतीय) साद मियाँ ने इसी वहाबी विचारधारा के अन्तर्गत आलाहज़रत के उर्स और सूफी, सुन्नी खानकाही बरेलवी समुदाय के सबसे बड़े केन्द्र ‘‘मरकजे अहले सुन्नत खानकाहे रज़विया दरगाहे आला हज़रत’’ को बदनाम करने के लिये यह साजिश रची है।

देश विदेश से आते के लोग नहीं हुई कोई अप्रिय घटना

कहा कि ज्ञात रहे कि अब तक उर्से रज़वी का यह इतिहास रहा है कि इस विश्व स्तरीय उर्स में देश-विदेश से लाखों ज़ायरीन आते हैं और बिना किसी अप्रिय घटना के अमन व शांति के साथ उर्स का सम्पन्न होता रहा है।

सीओ थर्ड की तैनाती की जगह बवाल पर उठाए सवाल

कहा कि इसके साथ यह भी ज्ञात रहे कि शहर में कई बैरियर लगाये गये थे जहाँ श्हामतगंज की तरह ही जायरीन की भीड़ जमा थी मगर उन बैरियरों पर कोई अप्रिय घटना न घटी। आखिर जहाँ साद मियाँ तैनात थे वहीं यह वबाल क्यों हुआ ?

यह भी जाँच का विषय है कि जिस पथराव की घटना को बुन्यिाद बनाकर साद मियाँ ने यह वबाल कराया है वह पथराव करने वाले कौन लोग हैं ? उन्हें चिन्हित किया जाए।

असामाजिक तत्वों द्वारा पथराव करना बताया

हमारा मानना यह है कि यह पथराव करने वाले जायरीन नहीं बल्कि कुछ असामाजिक तत्व थे इसकी गहनता से जाँच होनी चाहिए। यह भी जाँच का विषय है कि बैरियर लगाकर जायरीन को किस गाइडलाइन, किस कानून और किस शासनादेश के अन्तर्गत रोका गया ? क्या बरेली में कफ्र्यू घोषित कर दिया गया था? क्या यह जायरीन गवर्मेन्ट विरोधी धरना-प्रर्दशन में जा रहे थे। या कहीं चक्का जाम करने जा रहे थे।

इस संबन्ध में सज्जादा नशीन ने शासन और प्रशासन के सम्मुख यह मांगे भी रखीं

(1) शहामतगंज वबाल की किसी रिटायर्ड जज द्वारा निष्पक्ष तथा उच्च स्तरीय जाँच करायी जाए।

(2) शहामतगंज वबाल तथा जायरीन पर लाठीचार्ज के ज़िम्मेदार पुलिस कर्मियों पर सख्त कार्यवाही की जाए।

(3) सीओ (तृतीय) साद मियाँ और बारादरी पुलिस इंस्पेक्टर तथा शहामतगंज पुलिस चैकी इंचार्ज को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर लाईन हाज़िर किया जाए और साद मियाँ के इस अमानवीय कृत्य की उच्च स्तरीय जाँच करायी जाए।

(4) जायरीन को रोकने के लिए जो बैरियर लगाये गये वह किस शासनादेश और किसके निर्देश पर किये गये ? इसकी भी निष्पक्ष जाँच करायी जाए।

(5) जिन पर नामज़द या अज्ञात मुकदमें हुए हैं वह तत्काल प्रभाव से वापस लिये जाएं।

(6) मौलाना दानिश पर गंभीर धाराएं लगाकर उन्हें जेल भेजा गया है,उनकी रिहाई का फौरन बंदोबस्त किया जाए और उन्हें मुकदमें से बरी किया जाए।

 

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