जुलूस-ए-मोहम्मदी : सुब्हानी मियां की क़यादत में निकला जुलूस
बरेली में पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यौमे पैदाइश पर अंजुमन ख़ुद्दाम-ए-रसूल के ज़ेरे एहतिमाम जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला गया। सरपरस्त हज़रत सुब्हानी मियां, मुफ़्ती अहसन मियां और सय्यद आसिफ मियां की क़यादत में जुलूस कोहाड़ापीर से रवाना होकर दरगाह आला हज़रत पर मुकम्मल हुआ। रास्तों में फूलों से इस्तक़बाल हुआ और “लब्बैक या रसूलल्लाह” की सदाओं से फ़िज़ा गूंज उठी। मुफ़्ती सलीम नूरी ने कहा कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इंसानियत और अमन का पैग़ाम दिया। कई अंजुमनों की शिरकत रही। बारिश के बावजूद हजारों अकीदतमंद शामिल हुए और जश्न-ए-मिलादुन्नबी का जज़्बा दिखा।

रिपोर्ट – सैयद मारूफ अली
लब्बैक या रसूलल्लाह की सदाओं से गूंजा बरेली, बारिश में भीगकर अकीदतमंदों ने मनाया जश्न-ए-ईद-ए-मिलादुन्नबी
बारिश में भीगता जश्न-ए-पैग़म्बर
बरेली। पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यौमे पैदाइश (जन्म दिवस) का जश्न इस साल रिमझिम बारिश के बावजूद बड़ी शान-ओ-शौकत (धूमधाम) से मनाया गया। अंजुमन ख़ुद्दाम-ए-रसूल के ज़ेरे एहतिमाम (आयोजन) में हर साल की तरह इस बार भी जुलूस-ए-मोहम्मदी निकला। जुलूस की क़यादत (नेतृत्व) दरगाह आला हज़रत के सरपरस्त हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा ख़ान (सुब्हानी मियां), सज्जादानशीन (गद्दीनशीन) मुफ़्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) और अंजुमन ख़ुद्दाम-ए-रसूल के सदर (अध्यक्ष) सय्यद आसिफ मियां ने की।
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परचम-ए-रिसालत के साथ जुलूस रवाना
करीब दोपहर तीन बजे हज़रत सुब्हानी मियां ने सुबुर रज़ा को परचम-ए-रिसालत (धार्मिक झंडा) सौंपकर जुलूस को रवाना किया। जुलूस अपने कदीमी (पुराने/पारंपरिक) रास्तों—कोहाड़ापीर, क़ुतुबख़ाना, कुमार सिनेमा, नॉवेल्टी, इस्लामिया स्कूल, करोलान, बिहारीपुर ढाल से गुज़रते हुए दरगाह आला हज़रत पहुंचकर मुकम्मल (पूरा) हुआ। जगह-जगह अकीदतमंदों ने फूल बरसाकर इस्तक़बाल (स्वागत) किया।
नारों और नातों से गूंजा माहौल
जुलूस में शामिल लोग रंग-बिरंगी पगड़ियां और जुब्बे पहने हुए थे। अंजुमनों की शक्ल (रूप) में चलते हुए लोग “लब्बैक या रसूलल्लाह”, “सरकार की आमद मरहबा (स्वागत है)”, “दिलदार की आमद मरहबा”, “खुशियां मनाओ सरकार आ गए” जैसे नारों से शहर की फ़िज़ाओं (हवा/माहौल) को गूंजाते रहे। सबसे आगे बाग़ अहमद अली की “फ़ैज़ान-ए-रसूल (रसूल का करम/इनायत)” जुलूस का हिस्सा बनी।
तिलावत, नात और तक़रीर से हुआ आग़ाज़
जुलूस से पहले स्टेज प्रोग्राम हुआ। मुफ़्ती ज़ईम रज़ा ने तिलावत-ए-क़ुरान (क़ुरान की तिलावत) से आग़ाज़ (शुरुआत) किया। मौलाना सूफ़ी मुनव्वर नूरी ने नात-ओ-मनक़बत (नबी की तारीफ़ व शायरी) का नज़राना (भेंट) पेश किया। मुफ़्ती सलीम नूरी ने अपने ख़िताब (भाषण) में कहा कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूरी इंसानियत को अमन-ओ-शांति का पैग़ाम (संदेश) दिया। उन्होंने मुसलमान ही नहीं बल्कि पूरी इंसानियत की फ़लाह-ओ-बहबूद (भलाई) के लिए काम किया। यहां तक कि जानवरों और परिंदों के भी हुक़ूक़ (अधिकार) तय किए। इसलिए इस दिन को इंसानियत और आलमी (विश्व) अमन का दिन कहा जाना चाहिए।
दस्तारबंदी और इस्तक़बाल
दरगाह पर पहुंचने पर हज़रत सुब्हानी मियां, मुफ़्ती अहसन मियां और सय्यद आसिफ मियां का दस्तारबंदी (पगड़ी पहनाने की रस्म) कर इस्तक़बाल (स्वागत) किया गया। फूलों की बारिश कर उनका ख़ैरमक़दम (अभिनंदन) किया गया।
अंजुमनों की शानदार शिरकत
इस जुलूस में शहर की कई नामी अंजुमनों ने शिरकत (भागीदारी) की। इनमें अंजुमन अनवारे मुस्तफ़ा, अंजुमन गुलशन-ए-रज़ा, अंजुमन ग़ौसुल वरा, अंजुमन आशिक़ाने रज़ा, अंजुमन जानिसाराने रसूल, अंजुमन क़ुर्बान-ए-रसूल, अंजुमन रज़ा-ए-मिल्लत और अंजुमन फ़ैज़ुल क़ुरान शामिल रहीं।
मुकम्मल इंतज़ाम, बेहतरीन व्यवस्था
जुलूस की निगरानी और इंतज़ामात (व्यवस्था) को मुकम्मल (संपूर्ण) बनाने में कई ज़िम्मेदारों ने अहम किरदार (भूमिका) निभाया। इनमें क़ारी कलीम-उर-रहमान क़ादरी, राशिद अली ख़ान, मोहसिन हसन ख़ान, परवेज़ नूरी, शाहिद नूरी, हाजी जावेद ख़ान, अजमल नूरी, ताहिर अल्वी, औरंगज़ेब नूरी, शारिक बरकाती, राशिद हुसैन, अब्दुल माजिद, मंज़ूर रज़ा, मुजाहिद बेग, इशरत नूरी, आसिम हुसैन, सय्यद माजिद रज़ा, काशिफ सुब्हानी, आदिल रज़ा, सुहैल रज़ा, तारिक सईद, जावेद ख़ान, अरबाज़ रज़ा, काशिफ रज़ा, हस्सान ख़ान, अशमीर रज़ा और इमरान ख़ान प्रमुख रहे।
जश्न-ए-मिलाद का पैग़ाम
जुलूस-ए-मोहम्मदी का समापन (अंत) दरगाह आला हज़रत पर हुआ, जहां बड़ी तादाद (संख्या) में अकीदतमंद मौजूद रहे। बारिश ने भी लोगों के जज़्बे (उत्साह) को कम नहीं किया और देर रात तक फ़िज़ाओं (माहौल) में “लब्बैक या रसूलल्लाह” की सदाएं (आवाज़ें) गूंजती रहीं।