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कमर्शियल भवनों पर चला अग्नि विभाग का चाबुक

बरेली । लखनऊ के होटल लिवाना सुइट्स में आग लगने से 4 लोगों की मौत हो गई थी। जिसको लेकर शासन ने और अग्नि विभाग ने बरेली के अग्नि विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे बरेली के कमर्शियल प्रतिष्ठानों में चेकिंग करें कि जितने भी कमर्शियल प्रतिष्ठान हैं उनमें अग्निशमन यंत्र लगे हैं वे मानक के अनुरूप है या नहीं या फिर इन कमर्शियल प्रतिष्ठानों में अग्नि विभाग से एनओसी मिली हुई है या नहीं।

आज बरेली में इसी को लेकर सघन चेकिंग अभियान चलाया गया जहां पर 90% कमर्शियल भवनों में अग्निशमन यंत्रों को लेकर गड़बड़ियां पाई गई। फायर विभाग के अफसर जब एक होटल पर पहुंचे तो बताया जाता है कि होटल के स्टाफ द्वारा उनसे बदसलूकी की गई जिसके बाद मुकदमा दर्ज कराया गया और 2 कर्मचारियों को हिरासत में लिया गया है।

मीडिया से बात करते हुए अग्नि विभाग के अधिकारी ने बताया कि शासन से और उनके हेड ऑफिस से उनको 3 दिन के अंदर बरेली के सारे कमर्शियल भवनों की जांच कर रिपोर्ट मांगी गई है। उनका कहना है कि उन्होंने टीमों का गठन किया है मगर एरिया बड़ा है 3 दिन के अंदर सारे कमर्शियल भवनों को चेक कर पाना मुमकिन नहीं है लेकिन समय के बाद भी उनका अभियान जारी रहेगा और सारे कमर्शियल भवनों की चेकिंग की जाएगी।

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अब सोचने वाली बात तो यह है कि बगैर नक्शा पास किए जब इमारतों का निर्माण होता है तो विकास प्राधिकरण की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी हुई होती है। दूसरा बड़ा सवाल यह है कि जब इमारतों का नक्शा पास ही नहीं होता है तो उसे एनओसी मिल कैसे जाती है। फिलहाल अग्नि विभाग के द्वारा तो अभियान शुरू कर दिया गया है मगर विकास प्राधिकरण के द्वारा अभी कोई अभियान शुरू नहीं किया गया है। जिन कमर्शियल प्रतिष्ठानों में एनओसी नहीं है या मानक के विपरीत उन्हें एनओसी मिली है तो उन के खिलाफ तो कार्यवाही हो रही है और होना भी चाहिए।

मगर क्या अग्निशमन विभाग के उन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी जिन्होंने आंखें मूंदकर ऐसे कमर्शियल प्रतिष्ठानों को एनओसी दी ? क्या उन विकास प्राधिकरण के अधिकारियों पर कार्रवाई होगी जिन के दौर में कमर्शियल भवनों का निर्माण होता रहा और वो आंखें मूंदे बैठे रहे ? इस सारे खेल में कमर्शियल भवनों वाले तो दोषी है ही मगर उन अधिकारियों का ज्यादा दोष साबित हो रहा है जिन्होंने इस गलत काम को होने दिया या फिर होने में सहयोग किया।

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